मंगला गौरी व्रत खासतौर पर राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और बिहार में प्रचलित है। सावन माह के हर मंगलवार को देवी पार्वती का पूजन मंगला गौरी व्रत से किया जाता है।
यह व्रत अविवाहित कन्याएं पूरे योग के साथ करती हे तो शादी जल्दी तय हो जाएँगी। उन अचे पति मिलेंगे।
विवाहित औरतें इस मंगला गौरी व्रत को पति की लंबी उम्र व सेहत के लिए रखती हैं।
लाल कपड़े पर मंगला गौरी के चित्र रखकर पूजन करें। चंदन, सिंदूर, हल्दी,चावल, मेहंदी, काजल, पुष्प चढ़ाएं।
मंगला गौरी पूजा में 16 की संख्या का बहुत महत्व है।
पूजा में दीपक 16 बत्तियों वाला जलाना चाहिए।
मां मंगला गौरी को 16 चीजों का भोग लगाना चाहिए।
सुहाग की निशानी के लिए 16 चूडिय़ां भी चढ़ानी चाहिएं।
16 की संख्या में माला, आटे के लड्डू, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, सुहाग सामग्री अर्पित करें।
इसके बाद गौरी माता की कथा सुनें।
पूजन की यह सामग्री बाद में किसी सुहागिन को दान की जा सकती है।
एक बार यह व्रत प्रारंभ करने के पश्चात इस व्रत को लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है।
तत्पश्चात इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन कर देना चाहिए।
यह व्रत अविवाहित कन्याएं पूरे योग के साथ करती हे तो शादी जल्दी तय हो जाएँगी। उन अचे पति मिलेंगे।
विवाहित औरतें इस मंगला गौरी व्रत को पति की लंबी उम्र व सेहत के लिए रखती हैं।
गणेश जी की पूजा-अर्चना
इस व्रत को रखने के लिए सावन के हर मंगलवार को सुबह जल्दी उठ कर नाहा ने के बाद गणेश जी को मन में प्रार्थना करना चाहिए।शिवलिंग का पूजन
१०८ बार ॐ नमः शिवाय मंत्र का जप करें। जल, बिल्व पत्र, फलादि सहित शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।मंगला गौरी व्रत
नए कपड़े पहन कर मां मंगला गौरी (देवी पार्वती ) के चित्र या मूर्ति को उत्तर दिशा में रखकर विधिवत पूजा करनी चाहिए।लाल कपड़े पर मंगला गौरी के चित्र रखकर पूजन करें। चंदन, सिंदूर, हल्दी,चावल, मेहंदी, काजल, पुष्प चढ़ाएं।
मंगला गौरी पूजा में 16 की संख्या का बहुत महत्व है।
पूजा में दीपक 16 बत्तियों वाला जलाना चाहिए।
मां मंगला गौरी को 16 चीजों का भोग लगाना चाहिए।
सुहाग की निशानी के लिए 16 चूडिय़ां भी चढ़ानी चाहिएं।
16 की संख्या में माला, आटे के लड्डू, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, सुहाग सामग्री अर्पित करें।
इसके बाद गौरी माता की कथा सुनें।
पूजन की यह सामग्री बाद में किसी सुहागिन को दान की जा सकती है।
एक बार यह व्रत प्रारंभ करने के पश्चात इस व्रत को लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है।
तत्पश्चात इस व्रत का विधि-विधान से उद्यापन कर देना चाहिए।