कुशा घास का महत्व हिन्दू धर्म में - - कुशा से जुड़ी धार्मिक कथाओं के अनुसार कुशा की उत्पत्ति पालनहार श्री हरि विष्णु जी के रोम से हुई थी।
- मान्यताओं की मानें तो जब भी कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ या ध्यान किया
जाता हैं तब शरीर से सकारात्मक ऊर्जाएं लगातार निकलती रहती है।
- कुशा का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु जी को तथा अग्रभाव शिव जी को माना जाता है।
- कुशा में तीनों देव यानि त्रिदेव मौज़ूद हैं।
- ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान आदि में इसका
प्रयोग किया जाना अनिवार्य होता है।
- बल्कि ये भी बताया जाता है तुलसी की
तरह कुशा भी कभी बासी नहीं होती। इसलिए एक बार उपयोग की गई गई कुशा का
बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
- धार्मिक अनुष्ठान को करते समय कुशा को अंगूठी के रूप में हथेली की अनामिका अंगुठी में धारण किया जाता है।
- अंगुठी के अलावा इसकी मदद से पवित्र जल का छिड़काव भी किया जाता है।
- कहा
जाता है कि कुशा मानसिक और शारीरिक दोनों की शुद्धता के लिए ज़रूरी होती
है।
- ग्रहण से पहले ही तमाम खाने-पीने की चीजों में कुश डाल कर रख दिया जाता है।
ताकि खाने की चीज़ों की पवित्रता बनी रही। तथा उसमें किसी भी तरह के
कीटाणु प्रवेश न कर सकें।
कुशा घास का महत्व हिन्दू धर्म में -
- कुशा से जुड़ी धार्मिक कथाओं के अनुसार कुशा की उत्पत्ति पालनहार श्री हरि विष्णु जी के रोम से हुई थी।
- मान्यताओं की मानें तो जब भी कुश के आसन पर बैठकर पूजा-पाठ या ध्यान किया जाता हैं तब शरीर से सकारात्मक ऊर्जाएं लगातार निकलती रहती है।
- कुशा का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु जी को तथा अग्रभाव शिव जी को माना जाता है।
- कुशा में तीनों देव यानि त्रिदेव मौज़ूद हैं।
- ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है कि प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान आदि में इसका प्रयोग किया जाना अनिवार्य होता है।
- बल्कि ये भी बताया जाता है तुलसी की तरह कुशा भी कभी बासी नहीं होती। इसलिए एक बार उपयोग की गई गई कुशा का बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
- धार्मिक अनुष्ठान को करते समय कुशा को अंगूठी के रूप में हथेली की अनामिका अंगुठी में धारण किया जाता है।
- अंगुठी के अलावा इसकी मदद से पवित्र जल का छिड़काव भी किया जाता है।
- कहा जाता है कि कुशा मानसिक और शारीरिक दोनों की शुद्धता के लिए ज़रूरी होती है।
- ग्रहण से पहले ही तमाम खाने-पीने की चीजों में कुश डाल कर रख दिया जाता है। ताकि खाने की चीज़ों की पवित्रता बनी रही। तथा उसमें किसी भी तरह के कीटाणु प्रवेश न कर सकें।