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छिन्नमस्ता देवी महत्व - माँ छिन्नमस्तिका देवी कथा

दश महाविद्याओं में से छठी महाविद्या श्री छिन्नमस्तिका देवी हे।  छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी।  छिन्नमस्ता देवी की स्मरण मात्र से ही नर सदाशिव हो जाता है तथा पुत्र, धन, दीर्घ आयु ,पाण्डित्य आदि दुश्मनो की नाश की प्राप्ति होती है।

छिन्नमस्ता देवी कथा 

छिन्नमस्ता देवी कथा कालितंत्रम् में लिखा हे।  इस हिन्दू धर्म ग्रन्थ के अनुसार एक समय में देवी पार्वती अपनी सहचरी डाकिनी व  वर्णिनी (कुछ ग्रंथोंमें जाया व विजय नाम दिया हे ) के साथ श्री मन्दाकिनी नदी में स्नान करने गई।

वहां डाकिनी व  वर्णिनी कामाग्नि से पीड़ित वह कृष्णवर्ण की हो गई।

तदुपरांत डाकिनी व  वर्णिनी ने देवी पार्वती भोजन मांगा क्योंकि वे बहुत भूखी थी।

देवी पार्वती  ने उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा परंतु सहचरियों ने बार-बार देवी से भोजन की याचना की।

उनकी बार बार खाने की मांग सुनकर देवी ने अपनी कटार से अपना सिर छेदन कर दिया, छिन्न सिर देवी के बाएं हाथ पर आ गिरा।

उनके कबन्ध से रक्त की तीन धाराएं निकली।

दो धाराएं उनकी सहचरी डाकिनी और वर्णिनी के मुख में गई तथा तीसरी धारा का छिन्न शिर से स्वयं पान करने लगी।

ईथर भूक काम का भूक हैं। चित्रों में छिन्मस्तिका काम देव और उनके पत्नी रति के ऊपर कड़े हे। इसे  काम के ऊपर देवी की विजय माना  जाता है।



 माँ छिन्नमस्तिका देवी कथा
छिन्नमस्ता देवी यंत्र 

छिन्नमस्ता देवी की महत्व 

  • छिन्नमस्ता की गणना काली कुल में की जाती है। 
  • छिन्नमस्ता महाविद्या का संबंध महाप्रलय से है। 
  • महाप्रलय का ज्ञान कराने वाली यह महाविद्या भगवती का ही रौद्र रूप हैं।
  • महर्षि याज्ञवल्क्य और परशुराम इस विद्या के उपासक थे। 
  • श्री मत्स्येन्द्र नाथ व गोरखनाथ भी इसी के उपासक रहे हैं। 
  • दैत्य हिरण्यकश्यप व वैरोचन भी इस शक्ति के एक निष्ठ साधक थे।
  • श्री छिन्नमस्ता का पीठ "चिन्तपूर्णी" (हिमाचल प्रदेश) नाम से विख्यात है।